Increasing Corona cases and India’s staggering steps; Is government machinery failing in this battle?
#IndiaFightsCorona #VandeBharatMission #MigrantLabourers
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है जहाँ सरकार जनता के लिए जवाबदेह होती है मगर वर्तमान सरकार मानसिकता प्रतिक्रियावादी है ना कि जवाबदेह और दूरदर्शिता वाली. यहाँ कर भी बड़ी दिलचस्प बात है कि उलटे जनता ही सरकार को जवाबदेह हो गयी है. देश में कोई बड़ा निर्णय बिना सोचे सोचे समझे एक झटके में ले लिया जाता है बिना उसके दूरगामी दुष्परिणाम कि चिंता किये हुए. भारत आज एक ऐसी जंग लड़ रहा है जिसके लिए वो कभी तैयार था ही नहीं, महज सरकारी आंकड़ों से सिद्ध कर देना कि हम कोरोना की जंग डॉक्टर, पुलिस और कोरोना योद्धाओं के बदौलत जीत जायेंगे इस वक्तव्य में जनता नदारद है क्यूंकि कोरोना का भय सिर्फ इस गरीब और लाचार जनता को ही है.
प्रयोग के तौर पर जब पहली बार Sunday, 22 March को जनता कर्फ्यू लगाया गया तो पूरे देश ने सरकार के इस फैसले का स्वागत पूरे जोश के साथ किया, मगर क्या इस प्रयोग को आगे चलकर 25 March 2020 को लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए जनता का विश्वाश हासिल किया गया, नहीं. महज 4 घंटों का वक़्त देकर देश में नोटबंदी जैसा अफरा तफरी का माहौल पैदा कर दिया गया. इस मामले में सिंगापोर का उदाहरण लिया जा सकता है जिसने 1 अप्रैल 2020 को घोषणा की कि 7 अप्रैल 2020 से 7 मई 2020 तक देश में लॉकडाउन रहेगा. इस दौरान लोग अपने गंतव्य तक पहुँचकर सरकारी दिशा निर्देशों का पालन करने लगे.
दूसरा उदाहरण ताइवान का लिया जा सकता है, WHO ने 11 March 2020 तक कोरोना को महामारी भी नहीं घोषित किया गया था तभी उसने अपने विदेशी फ्लाइट्स की आवाजाही पर रोक लगा दी थी. लोगों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी. जबकि WHO के Country Office China में 31 December 2019 को पहला केस संज्ञान में आ चुका था. मगर हमारे देश में लोगों की जान की परवाह किये बगैर देश की सुरक्षा से समझौता कर नमस्ते ट्रम्प में लगा रहा. देश भर की कुछेक मीडिया को छोड़कर बाकि सबके कैमरे अहमदाबाद पहुँच गए. उसके बाद 23 मार्च 2020 को मध्य प्रदेश में कमल नाथ की सरकार को अल्पमत में लेकर शिवराज सिंह चौहान CM बने. उसके बाद ही तुरंत 25 March 2020 को लॉकडाउन क्यों घोषित किया गया. क्यों ये सवाल सरकार से जनता को जागरूक करने वाली मीडिया ने नहीं पूछे. क्या उस दिन तक पाकिस्तान में हो रही अंदरूनी हलचलों का हमारी ज़िन्दगी से सीधा सरोकार था, नहीं. जब ये सवाल सुलगने लगे तो अचानक ही 30 March को तब्लीग़ी जमात को बलि का बकरा बनाकर सामने ला दिया गया जबकि निज़ामुद्दीन मरकज़ का मार्च कैलेंडर ये दर्शाता है कि आलमी मशवरा (अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी समिति की बैठक) 8-10 मार्च के दौरान, प्रांतीय सभा आंध्र प्रदेश में 15-17 मार्च के दौरान और तमिलनाडु में 22-24 मार्च के दौरान होना पहले से तय था. तो क्या इस बारे में सरकार कि तरफ से कोई जानकारी पब्लिक की गयी, नहीं.
11 March 2020: WHO characterizes #COVID19 as a pandemic. 90% of cases are still in just four countries. 81 countries have not reported any cases, and 57 countries have reported 10 cases or less. #coronavirus https://t.co/qEE36ZrAil
— World Health Organization (WHO) (@WHO) April 9, 2020
सरकारी मशीनरी फेल होने का सबूत ये भी है कि जब सरकार 25 March 2020 को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके रामायण और महाभारत को दुबारा से DD national पर शुरू करने की बात कह रही थी तो उस वक़्त उनके सलाहकार उन गरीब प्रवासी मज़दूरों, कामगारों, विद्यार्थियों और मरीज़ों के बारे में भी जानकारी पब्लिक कर सकती थी, मगर वे भूखे प्यासे पुलिस के डंडे खाते, धूप-गर्मी, यहाँ तक कि जान की बाज़ी लगाकर अपने घरों तक पहुँच पाए. दूसरी तरफ दुनियाँ के हर हिस्से से भारतियों को लेन के लिए मिशन वन्दे मातरम शुरू किया गया. दुनियाँ और सोशल मीडिया में आक्रोश को देखते हुए ट्रेन और बस चलाने की राजनैतिक मंशा हुयी. यहाँ सोनू सूद जैसे देशभक्तों ने मशीनरी को पिछड़ते हुए अपनी नैतिक जिम्मेदारी का खूब निर्वहन किया. लोगों का सरकार पर विश्वाश की कमी के कारण ही सोनू को ट्वीट कर मदद मांगने लगे.
Huge demand on social media for retelecast of Ramanand Sagar’s Ramayana and B R Chopra’s Mahabharata on DD National. @PrakashJavdekar @DDNational #StayHome #21daysLockdown
— Akhilesh Sharma (@akhileshsharma1) March 25, 2020
सरकार यदि IT सेल और पालतू मीडिया के चक्र से बाहर निकले तो देखेगा कि पूरे देश में उसके अपने देशवासियों का क्या हश्र हुआ है जिन्होंने भारी मतों से दुबारा सरकार चलाने के लिए घंटो धूप में खड़े होकर अपना अंगूठा वोटिंग मशीन पर लगाने के बाद जय श्री राम का उद्घोष किया था. ये बात उन लोगों के कतई समझ नहीं आएगी जो AC में बैठकर कानून और नियम बनाने का काम करते हैं. राहत का चंदा किस तरह से कहां दिया जाए, उसमें भी बंदरबांट का आभास पैदा होता रहा. सरकार वहां पंक्चर की दुकान की तरह बर्ताव करती नज़र आई, न समन्वय दिखा, न संवाद, न पारदर्शिता, न जवाबदेही, न गंभीरता. फ़ैसले बदलते चले गये, पारदर्शिता से बचा गया, राज्यों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया.
और हाँ अभी जंग और मुश्किल होने वाली है तो कृपया फूल बचाकर रखे ताकि उन लोगों के ऊपर बरसाए जा सके जब हम ये कह सकें कि हमारा प्यारा देश अब कोरोना मुक्त है, उससे पहले नहीं.