भारतीय पत्रकारिता की पहचान इन शोर-शराबे वाले पत्रकारों के बीच कहीं खो गयी?

भारतीय पत्रकारिता की पहचान इन शोर-शराबे वाले पत्रकारों के बीच कहीं खो गयी?

Is the identity of Indian journalism lost somewhere between these noisy journalists?

#OldNewsAnchors #NewsDebates #BanDebate

आज हर न्यूज़ चैनल्स पर न्यूज़ कम advertisment और चीखने चिल्लाने वाले डिबेट आपको ज्यादा देखने को मिल रहा है और हम भी बड़ी ईमानदारी से उसको समय देते हैं जिसको आज के समय में पत्रकारिता कहना मूर्खता ही होगी. आज आप कोई न्यूज़ चैनल टीवी पर देख लें आपको ऐसा महसूस होगा कि आपने सिर्फ रिमोट से नंबर बदले हैं बाकी लगभग कंटेंट और भाषा शैली सबकी एक जैसी ही लगेगी. लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना और अपरोक्ष रूप से धर्म जाति लिंग आधारित टिपण्णी कर हिंसा प्रज्वल्लित करना इनके अजेंडे में शामिल हो चुके हैं.

ये सारे कार्यक्रम प्रायोजित ही लगेंगे और कंटेंट भी एक जैसे ही लगेंगे, जिनका वास्तविक पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है.कभी कभी डिबेट का स्तर इतने नीचे घिर जाता है कि गली-गलौज और मार-पीट तक हो जाती है. याद होगा कि जब भारत में दूरदर्शन ने अपना न्यूज़ ब्रॉडकास्ट किया था तब के न्यूज़ एंकर की भाषा शैली और व्यवहारिक जमीनी पत्रकारिता आज भी लोगों को शालती है.

आपको उदाहरण दिए गए हैं आप खुद अंदाज़ा लगाइये कि कौन ज्यादा शालीन है–

आप अपने टीवी को किस लिए रिचार्ज करते हैं- भद्दे और बेहूदा ढंग से बनाया गया ऐड के लिए या जानकारी के नाम पर चीखते चिल्लाते न्यूज़ anchors के लिए या फिर मनोरंजन के नाम पर किसी ऐसे सीरियल के लिए जिसका कोई लॉजिक ही नहीं होता? विचार आपको करना है और निर्णय भी आपको ही करना है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि समय के साथ साथ परिवर्तन होना आवश्यक नहीं है, परन्तु परिवर्तन और आधुनिकता के नाम पर ये क्या परोसा जा रहा है. हमारे पैसों की बर्बादी क्यों?

विदेशी खबरें विशेष