The tree under which the Lord Buddha attained enlightenment holds a unique history.
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भगवान बुद्ध के बारे में आज शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो कि नहीं जानता, जिन्होनें अपने ज्ञान और मार्गदर्शन से लोगों को जीवन जीने की नई सीख दी। भगवान बुद्ध को अपने ज्ञान की प्राप्ति जिस पेड़ के नीचे हुई थी उसे बोधि वृक्ष कहा जाता है। ‘बोधि’ का मतलब ‘ज्ञान’ होता है और वृक्ष का मतलब पेड़ यानी बोधि वृक्ष का मतलब हुआ- ‘ज्ञान का पेड़’। आपको बता दें कि, यह पेड़ बिहार के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का पेड़ है ।
आपको बता दें कि, इसी पेड़ के नीचे ईसा पूर्व 531 में भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस पेड़ की भी बड़ी विचित्र कहानी है, जिसके बारे में शायद ही आप जानते होंगे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पेड़ को दो बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, लेकिन हर बार चमत्कारिक रूप से यह पेड़ फिर से उग आया था।
बोधि वृक्ष को नष्ट करने का पहला प्रयास ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में किया गया था। वैसे तो सम्राट अशोक बौद्ध अनुयायी थे, लेकिन कहते हैं कि उनकी एक रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे वृक्ष को कटवा दिया था। उस समय सम्राट अशोक दूसरे प्रदेशों की यात्रा पर गए हुए थे। हालांकि, उनकी रानी का ये प्रयास अफसल रहा। बोधि वृक्ष पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ था। कुछ ही सालों के बाद बोधि वृक्ष की जड़ से एक नया पेड़ उग आया। उस पेड़ को बोधि वृक्ष की दूसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है, जो करीब 800 साल तक रहा था।
दूसरी बार बोधि वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास सातवीं शताब्दी में बंगाल के राजा शशांक ने किया था। कहा जाता है कि वह बौद्ध धर्म का कट्टर दुश्मन था। उसने बोधि वृक्ष को पूरी तरह नष्ट करने के लिए उसे जड़ से ही उखड़वाने की सोची, लेकिन जब वो इसमें असफल रहा तो उसने वृक्ष को कटवा दिया और उसकी जड़ों में आग लगवा दी। लेकिन यह चमत्कार ही था कि इतना सबकुछ होने के बाद भी कुछ सालों के बाद उसकी जड़ से एक नया पेड़ निकला, जिसे तीसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है।
तीसरी बार तो बोधि वृक्ष वर्ष 1876 में प्राकृतिक आपदा की वजह से नष्ट हो गया था, जिसके बाद एक अंग्रेज लॉर्ड कनिंघम ने वर्ष 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरा से बोधिवृक्ष की शाखा मंगवाकर उसे बोधगया में फिर से स्थापित कराया था। यह बोधि वृक्ष की पीढ़ी का चौथा पेड़ है, जो बोधगया में आज तक मौजूद है। दरअसल, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए बोधि वृक्ष की टहनियां देकर उन्हें श्रीलंका भेजा था।