Site icon Prayag Today

किसकी साज़िश की वजह से ताइवान को WHO के ऑब्जर्वर से बाहर रखा गया है?

Because of whose intrigue, Taiwan is excluded from the WHO Observer?

#WHO #CoronaPandemic #WorldHealthAssembly #ChinaVsTaiwan

ताइवान केवल 35 हजार किमी का एक द्वीप है, जो चीन, जापान और फिलीपींस से घिरा हुआ है. वहां की आबादी करीब 2 करोड़ 35 लाख है. दुनिया के नक़्शे में बहुत ही छोटा मगर आज के परिपेक्ष्य में देश ताइवान जो चीन से ज्यादा दूरी न होने पर भी कोरोना महासंकट से अपने नागरिकों को ऐसे सुरक्षित किये हुए है, इस देश ने केवल 7 मौतें और 433 मरीजों पर ही इस वायरस के असर को रोक दिया है, अपनी कुशलता से ताइवान ने दुनिया में अपनी एक अलग ही पहचान बना ली है मगर ये बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को हज़म नहीं हो रही है और उसने ताइवान को वर्ल्ड हैल्थ असेम्बली में ऑब्जर्वर से बाहर रखा गया है. आखिर क्या कारण है कि ताइवान जैसे देश को WHO से बाहर क्यों रखा है? इसके पीछे कौन है?

ताइवान को WHO वर्ल्ड हैल्थ असेम्बली में ऑब्जर्वर से बाहर करने की इस साज़िश के पीछे कोई और नहीं बल्कि चीन जिम्मेदार है. आपको जानकर हैरानी होगी कि कभी चीन ही ताइवान का हिस्सा हुआ करता था और ताइवान से ही चीन की सरकार चलती थी और तो और आज भी ताइवान खुद को चीन ही कहता रहा है. बात तब की है जब 1945 में जब जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में सरेंडर कर दिया था मगर उससे पहले ही 1911 में चीन से राजवंश को खत्म करके चीन की सत्ता पर काबिज होने वाली ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ सरकार ने ताइवान पर भी कब्जा कर लिया था. इसमें उन्हें मित्र देशों इंगलैंड, फ्रांस आदि का समर्थन प्राप्त था. एक लम्बे समय से चीन में गृहयुद्ध चल रहा था जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी प्रमुख विरोधी पार्टी थी. जापान के हारते ही कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रवादियों रिपब्लिक ऑफ चाइना के खिलाफ विद्रोह कर सत्ता 1949 में चीन से उनकी सत्ता उखाड़ फेंकी और उन्हें ताइवान तक समेट दिया.

इस सत्ता पलट के बाद चीन की कम्युनिस्ट सरकार खुद के चीन होने का दावा करती रही और ताइवान की ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ सरकार खुद को चीन बताती रही. क्योंकि ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ मित्र देश थे, सो उसकी सरकार को यूनाइटेड नेशन्स में चीन के तौर पर मान्यता मिली. लेकिन 1971 में चीन की कम्युनिस्ट सरकार को ये दर्जा दे दिया गया. इसके बाद चीन लगातार पावरफुल होता गया. ताइवान के साथ अमेरिका जैसे कुछ देश अब भी हैं, लेकिन फिर भी कुल 15 देशों ने ही उसे मान्यता दे रखी है. जाहिर है यूनाइटेड नेशन्स की तमाम संस्थाओं में भी उसे मान्यता नहीं है. चीन उसे अपना हिस्सा बताता है.

चीन ने ताइवान को WHO से जुड़ी वर्ल्ड हैल्थ असेम्बली में ऑब्जर्वर चाइनीज ताइपेई के नाम से आने का मौका दे रही है, लेकिन कट्टर राष्ट्रवादी पार्टी से ताइवान की नई प्रेसीडेंट चीन के अतिक्रमण से बाहर निकालना चाहती हैं. 2016 में साई इंग वेन के राष्ट्रपति बनते ही चीन और ताइवान के रिश्ते फिर बिगड़ने शुरू हो गए हैं. WHO ने साफ़ कह दिया है कि सदस्य देश आपत्ति उठाने वाले देश यानी चीन से मिलकर तय करें कि ताइवान को फिर से WHA में ऑब्जर्वर रखें या नहीं. अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा आदि कुछ देशों ने ताइवान के समर्थन में वर्ल्ड हैल्थ असेम्बली में ऑब्जर्वर बनाने के लिए कैंपेन शुरू कर दिया है.

 

Exit mobile version