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कोरोना के कहर के बीच पर्यवरण को लेकर नयी तस्वीरें भी सामने आ रही है।


New photographs are also coming out of the corona amidst the havoc.

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पूरी दुनियाँ में जहाँ कोरोना कहर बरपा रहा है वहीँ दूसरी तरफ कोरोना महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन से पर्यावरण में काफी आश्चर्यजनक परिवर्तन हुए हैं। कोरोना वायरस की महामारी के चलते जहाँ अर्थव्यवस्था की रफ्तार में लगातार कमी देखी जा रही है वहीँ इस लॉकडाउन की वजह से वायरस के फैलाव को रोकने के साथ वायु और ध्वनि प्रदूषण में कमी आती जा रही है। इसका प्रमुख कारण सड़क पर कम वाहन, फैक्ट्रियों का बंद होने और निर्माण कार्यों का रुकना है। दुनियाँ भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता सभी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या यह बदलाव लंबे समय तक प्रभावी रह पाएगा।

दुनियाँ के अन्य हिस्सों की तरह ही भारत में भी पर्यावरण की कई समस्याएं है जैसे- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, कचरा और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण। तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आर्थिक विकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर औद्योगीक विस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादि भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के प्रमुख कारण हैं। पर्यावरण की समस्या का सीधा असर बीमारी, स्वास्थ्य के मुद्दों और आजीविका पर भी पड़ता है।

पर्यावरणीय मुद्दों में वन और कृषि-भूमि की उर्वरता में कमी, प्राकृतिक संसाधनों में कमी जैसे -पानी, खनिज, वन, रेत, पत्थर आदि, पर्यावरण क्षरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता में कमी, पारिस्थितिकी प्रणालियों में लचीलेपन की कमी, गरीबों के लिए आजीविका सुरक्षा शामिल हैं। वायु प्रदूषण, कचरे का प्रबंधन, बढ़ रही पानी की कमी, गिरते भूजल स्तर, जल प्रदूषण, संरक्षण और वन और वन्य जीवों की कमी, जैव विविधता के नुकसान और भूमि / मिट्टी का क्षरण प्रमुख पर्यावरणीय समस्या है। भारत की जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण के मुद्दों और अपने संसाधनों के लिए दबाव बढ़ाते है।

एक संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग प्रदूषित इलाकों में रहते हैं, और जिनके फेफड़ों पर इसका खराब असर हुआ है उनपर इस कोरोना वायरस का अधिक खतरा है। इसके अलावा पृथ्वी भूमध्य रेखा के मुकाबले ध्रुवों पर तेजी से अपना चक्कर लगाती है. इस वजह से ध्रुवों के ऊपर एक बहुत बड़ा भंवर बन जाता है जिसे जेट स्ट्रीम कहा जाता है. यह एक प्राकृतिक घटना है. लेकिन ओजोन डिप्लीटिंग पदार्थ (ODS) पदार्थ इस भंवर में तेजी रासायनिक क्रिया करते हुए एक चेन रिएक्शन बना लेते हैं और ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं. वे इस भंवर को भी दक्षिण की ओर धकेल रहे थे. इससे जलवायु परिवर्तन समेट बहुत सारे नुकसान हमें हो रहे थे. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग की वजहों में से एक यह भी बड़ी वजह थी.दुनिया भर में उद्योगों के बंद होने से वायुमंडल को नुकासन पहुंचाने वाली गैसों का उत्सर्जन बंद हो गया है. पिछले कई दशकों से पृथ्वी पर हमारी रक्षा कर रही ओजोन परत (Ozone layer) को जो उद्योगों की वजह से नुकसान पहुंच रहा था उसमें कमी आने से इसकी हालत में सुधार आ रहा है.

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलुरु में मार्च 9 से 23 (2020) के दौरान पीएम 2.5 का स्तर-


भारत में लॉकडाउन से सार्वजनिक और निजी यातायात लगभग बंद होने से पैट्रोल और डीजल के कारण वाहनों से निकलने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसी गैसें निकलना भी बहुत ही कम हो गई हैं. ऐसे में प्रदूषण का स्तर, खासतौर पर महानगरों में अभी से दिखाने भी लगा. उदाहरण के लिए पिछले वर्ष 4 अप्रैल 2019 में जहाँ लखनऊ में तापमान 38°c/20°c था वही इस वर्ष 4 अप्रैल 2020 में 33°c/19°c रह गया जाहिर है उच्चतम तापमान में लगभग C का अंतर आ गया है.

इस लॉकडाउन से निर्माण कार्यों और वाहनों के ठप्प होने से भी हवा साफ होने लगी है, पेड़ों पर पत्ते साफ़ रहने लगे हैं, नदियाँ काफी साफ़ सुथरी दिखने लगी हैं और चिड़िया चहचहाने लगी हैं. इसके अलावा वाहनों के शोर ने ध्वनि प्रदूषण में प्रभावी कमी कर दी है.

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