In this way, you will not get the benefit of the moratorium and you will also come in the list of defaulters.
#IndiaFightsCorona #EMIMoratoriumExtend
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने लोन मोरटोरियम छूट को तीन महीने के लिए और बढ़ाकर 31 अगस्त तक कर दिया है। मतलब ये है कि अगर आपका बैंक आपके आवेदन से सहमत है तो वे चाहें तो अगले 6 महीने तक लोन की EMI की किश्त ना चुका पाने स्थिति में भी आपको डिफॉल्टर नहीं मानेगी। RBI ने ये साफ-साफ़ कहा है कि मोरटोरियम देने का अधिकार बैंकों को दिया जा रहा है। बैंक इसका फायदा किसको देना चाहते हैं ये उनके अधिकार क्षेत्र में होगा। यहाँ आपको हम बताना चाहेंगे कि लोन मोराटोरियम उन्ही लोगों को लाभ पहुंचाएगी जिनकी आय कम होने के कारण लोन की EMI देने में असमर्थ हैं। मोराटोरियम अवधि में इसका फायदा लेने वालों के न तो क्रेडिट स्कोर पर असर आएगा और ना ही उन्हें कोई अतिरिक्त शुल्क देना होगा।
रिटेल सेगमेंट के अलावा कृषि लोन, माइक्रो-क्रेडिट, कमर्शियल व्हीकल लोन और क्रेडिट कार्ड्स जैसे दूसरे अनसिक्योर्ड लोन लेने वाले भी इसका लाभ ले सकते हैं। हालाँकि आपको एक बात जानना अत्यंत आवश्यक है कि लोन मोरटोरियम की अवधि खत्म हो जाने पर आपको एकमुश्त 6 महीने की EMI और उस पर लगने वाला ब्याज चुकाना होगा। अर्थात छह महीने की किश्त और ब्याज एकसाथ चुकाना आपके लिए और मुश्किल भरा हो सकता है।
मोराटोरियम अवधि के दौरान लगने वाला ब्याज भी ज़्यादा हो सकता है विशेषतौर पर बड़ी रकम के लोन वालों के मामले में, जैसे होम लोन, संपत्ति के बदले लोन (LAP) क्योंकि इनकी बकाया लोन राशि ज़्यादा होगी और भुगतान अवधि लंबी। यदि ऐसे लोगों ने 6 महीने छूट का फायदा तो ले लिया मगर EMI नहीं चुकाई तो 6 महीने के बाद एकमुश्त रकम न चुका पाए तो उनको ना तो मोरटोरियम का फायदा मिलेगा और डिफॉल्टर की लिस्ट में अलग से आ जाएंगे। ये फैसला काफी समझदारी से लेना होगा कि अगर आपको कहीं से भी एकमुश्त बड़ी रकम मिलने की उम्मीद है तो ही किश्त टालने का फैसला सही साबित हो सकता है अन्यथा उसे चुका देने में ही समझदारी है। क्रेडिट कार्डधारकों को तो अपने क्रेडिट कार्ड बिल पर मोराटोरियम चुनने से कतई बचना चाहिए।
एक तरह से देखा जाय तो ये आम आदमी पर जो पहले से ही कर्ज में दबा है उस पर ये नीति काफी बड़ा बोझ डालने वाली है। EMI मोरटोरियम की जगह यदि 6 माह के लिए EMI Pause का ऑप्शन मिला होता तो शायद आने वाले समय में बैंकों को NPA या डिफाल्टर में ना के बराबर संख्या देखने को मिलती।